तà¥à¤à¥‡ मांग कर खà¥à¤¦à¤¾ से कà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मांग लिया मैंने,
कà¥à¤¯à¤¾ हो गया अगर जिंदगी को ही आजमा लिया मैंने,
लोग कहते है सदियों से के इशà¥à¤• में रब बसता है,
गà¥à¤¨à¤¾à¤¹ हो गया जो इशà¥à¤• को ही खà¥à¤¦à¤¾ मान लिया मैंने,
जब à¤à¥€ माà¤à¤—ा मैंने बस तेरी खà¥à¤¶à¥€ की दà¥à¤† ही मांगी,
मेरी खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ उडा के ले गई आई जो बकà¥à¤¤ की आंधी,
सोचा था मागेगे तà¥à¤à¥‡ खà¥à¤¦à¤¾ के दर पर जा कर कà¤à¥€,
तà¥à¤à¥‡ खà¥à¤¦à¤¾ मान के तेरे दर पर ही सर को à¤à¥à¤•ा लिया मैंने
By Vivek Netan
More Shayari by Vivek Netan