गà¥à¥›à¤°à¥€ है रात कैसे सबसे कहेंगी आà¤à¤–ें
शरमा के खà¥à¤¦  से खà¥à¤¦ ही यारों à¤à¥à¤•ेंगी आà¤à¤–ें
ओ यार मेरे मà¥à¤à¤•ो तसà¥à¤µà¥€à¤° अपनी दे जा
तनà¥à¤¹à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ में उससे बातें करेंगी आà¤à¤–ें
उसने कहा था मà¥à¤à¤¸à¥‡ परदेस जाने वाले
जब तक न आà¤à¤—ा तू रसà¥à¤¤à¤¾ तकेंगी आà¤à¤–ें
मन में रहेगा मेरे बस पà¥à¤¯à¤¾à¤° का उजाला
हर राह ज़िनà¥à¤¦à¤—ी की रोशन करेंगी आà¤à¤–ें
होठों की मेरे कलियाठकब तक नहीं खिलेंगी
अशà¥à¤•े लहू से आखिर कब तक रचेंगी आà¤à¤–ें
सà¥à¤– दà¥à¤ƒà¤– हैं इसके पहलू ये  ज़िनà¥à¤¦à¤—ी है सिकà¥à¤•ा
हालात  ज़िनà¥à¤¦à¤—ी के खà¥à¤¦ ही करेंगी आà¤à¤–ें
तू à¤à¥€ ‘रक़ीब’ सो जा होने को है सवेरा
वरना हथेली दिन à¤à¤° मलती रहेंगी आà¤à¤–ें
By Satish Shukla “Raqeeb”
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