शहीदे वतन का नहीं कोई सानी
वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी
वतन पर निछावर किया अपना सब कà¥à¤›
लड़कपन का आलम, बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¤¾, जवानी
किया दिल से हर फैसला ज़िंदगी का
कोई बात समà¤à¥€, न बूà¤à¥€, न जानी
लड़े खून की आख़िरी बूà¤à¤¦ तक वो
लहू की नदी à¤à¥€ पड़ी है बहानी
कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन कीâ€
वसीयत शहीदों की है मà¥à¤¹à¤à¤œà¤¬à¤¾à¤¨à¥€
वतन के लिठजो फ़ना हो गठहैं
तिरंगा उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ कहानी
‘रक़ीब’ उनका कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ज़िकà¥à¤° दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िकà¥à¤° à¤à¥€ जाविदानी
By Satish Shukla “Raqeeb”
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