à¤à¥€à¤¡à¤¼ में वो अजनबी मेरा हमसफ़र निकला
चला था जिसे लूटने वो मेरा ही घर निकला …..
बरसों जिससे उलà¥à¤«à¤¼à¤¤ में ख़ाता फ़à¥à¤°à¥‡à¤¬
उलà¥à¤Ÿà¤¾ जो घà¥à¤‚घट फिर वही सितमà¥à¤®à¤—र निकला …..
पीने में दो आà¤à¤¸à¥‚ उसकी उमà¥à¤° गà¥à¤œà¤¼à¤° गई
मेरे हर आà¤à¤¸à¥‚ के पीछे à¤à¤• समंदर निकला …..
जानता था मैं à¤à¥€à¤¡à¤¼ में खो जाà¤à¤—ा वो
मेरे बग़ैर वो अकेला कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सफ़र पर निकला …..
बता और कà¥à¤¯à¤¾ दूं सबूत अपनी चाहतों का
तेरी हिनà¥à¤¨à¤¾ में à¤à¥€ मेरा ख़ून-à¤-जिगर निकला …..
ता उमà¥à¤° लकीरों में ढूंढता रहा जिसे
तेरे क़दमों तले मेरा खोया मà¥à¤•दà¥à¤¦à¤° निकला …..
देता रहा ‘वीर’ हर किसी को ख़à¥à¤¶à¥€ के फूल
माà¤à¤—ा जो फूल मैने हर हाथ से पतà¥à¤¥à¤° निकला