दौलत का चंद रोज़ में यूं जादू चल गया,
कल तक जो आदमी था वो पतà¥à¤¥à¤° में ढल गया,
मैं तो गमे-हयात से बेज़ार बैठा था,
आई जो तेरी याद मेरा जी बहल गया,
आने से उनके घर में मेरे रौशनी हà¥à¤ˆ,
कल रात मेरे घर से अà¤à¤§à¥‡à¤°à¤¾ निकल गया,
फिर यूठहà¥à¤† के धरà¥à¤® की दीवार आ गयी,
उसने à¤à¥€ आà¤à¤–ें फेर लीं मैं à¤à¥€ बदल गया,
ये आग सारी उमà¥à¤° मà¥à¤à¥‡ याद रहेगी,
इस आग में तो पà¥à¤¯à¤¾à¤°, वफ़ा, दिल à¤à¥€ जल गया,
अब आप आठहो मेरा अहवाल पूछने,
जब थम गया तूफ़ान बà¥à¤°à¤¾ वक़à¥à¤¤ टल गया,
कà¥à¤› देर बाद चाà¤à¤¦ निकल आà¤à¤—ा ‘रक़ीब’,
अब शाम होने वाली है सूरज तो ढल गया
By Satish Shukla “Raqeeb”
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